ज्योतिष एक विज्ञान
jyotish ek vigyan
Tuesday, August 27, 2019
JYOTISH EK VIGYAN (PART-4)
अब तक आप सब यह समझ ही गए होंगे कि ज्योतिष विषय कल्पना मात्र नहीं है ,यह अपने आप में पूर्ण विज्ञान है जो आधुनिक विज्ञान से महान है i मैंने आपको ज्योतिष एक विज्ञान (भाग -3) में कुछ प्रश्न पूछे थे पहले तो उनका जवाब देता हूं फिर आगे बढ़ते हैं ।।
Wednesday, July 17, 2019
Jyotish Ek Vigyan(part 3)
ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 3)
जैसा कि मैंने ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 1)और ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 2) में यह बताया है कि ज्योतिष ही एकमात्र ऐसा शास्त्र है,जिसके सूर्य और चंद्रमा साक्षी हैं।पिंड अर्थात ग्रह अपनी किरणों से हम सब जीवो पर अपना प्रभाव डालते हैं। क्योंकि सूर्य और चंद्रमा हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं और इनकी किरणों का प्रत्यक्ष रूप से हम अपने ऊपर प्रभाव होते हुए देख सकते हैं, इसी तरह बाकी ग्रह जो हमें दिखाई नहीं देते लेकिन वह भी अपनी किरणों द्वारा हमें प्रभावित करते हैं।
इसी संदर्भ में आइए एक बात पर और विचार करते हैं हम जिस ग्रह पर रहते हैं उसका नाम है पृथ्वी । पृथ्वी से 13 l बड़ा ग्रह है सूर्य अर्थात यदि सूर्य को खाली करके उसमें पृथ्वीयां फिट की जाए तो उसके अंदर लगभग कई पृथ्वियां समा जाएंगी।सूर्य पृथ्वी से इतना बड़ा ग्रह है और सूर्य से भी बड़ा ग्रह है गुरु।गुरु ब्रह्मांड में ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है और गुरु से भी बड़ा है ज्येष्ठा नक्षत्र।यदि आज के युग में कोई व्यक्ति पृथ्वी से ज्येष्ठा नक्षत्र तक पहुंचने की सोचे तो उस व्यक्ति को लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष का समय ज्येष्ठा नक्षत्र तक पहुंचने में लगेगा। यह बात वैज्ञानिकों के लिए सोचने का विषय है कि हम भारतीय ज्येष्ठा नक्षत्र को बहुत पहले से ही लिखते आ रहे हैं।
ज्येष्ठा नक्षत्र के बारे में हम हजारों लाखों वर्षों से जानते हैं।अब सोचने का विषय यह है कि हम भारतीय इतने वर्षों पूर्व जबकि हमारे पास कोई आधुनिक साधन भी नहीं होते थे हम ज्येष्ठा नक्षत्र तक कैसे पहुंच गए और उसका नामकरण कर आए ज्येष्ठा। हम सब जानते हैं कि हमारे भारत मे ज्येष्ठ का अर्थ होता है सबसे बड़ा। अर्थात हम यह बहुत पहले से ही जानते हैं कि ज्येष्ठा नक्षत्र से बड़ा ब्रह्माण्ड में कोई नही है ,ग्रह , उपग्रह, नक्षत्र इत्यादि कोई भी नहीं। पश्चिमी सभ्यता के लोगों को ये सब लगभग केवल 800 वर्ष पूर्व पता लगा। उस समय या तो हमारे पास विज्ञान आज के विज्ञान से कहीं ज्यादा होगा या ऋषि मुनि अपने तपोबल से यह ज्ञान प्राप्त करते थे।हमे अपने ऋषी मुनियों का ऋणि रहना चाहिए। जिनके कारण ये महान ज्ञान हमे प्राप्त हुआ।
ज्योतिषशास्त्र ना केवल मानव जीवन की व्याख्या करता है अपितु सृष्टि के विषय में भी फल का निरूपण करता है।खगोलीय हलचलें किन योगों में होंगी, सूर्य ग्रहण कब पड़ेगा, सूर्य का अलग-अलग जगहों में प्रतिदिन उदय और अस्त होने का समय, वर्षा कब होगी ,अधिक वर्षा और कम वर्षा किन योगों में होती है ,मेघों का गर्भधारण क्या है ,मौसम ज्ञान ,खेती कैसी होगी ,भूकंप किस योग में आएगा, बाजार की तेजी मंदी का विचार ,वास्तु विद्या तथा भूमि परीक्षण आदि बहुत से विषय ज्योतिष शास्त्र में विवेचित रहते हैं।भूमि के नीचे कहां पर कितनी गहराई में जल है, कहां अस्थियाँ हैं, इन सब के ज्ञान के अद्भुत तरीके ज्योतिष में विद्यमान है। मनुष्य के आज भी समस्त कार्य ज्योतिष द्वारा ही चलते हैं किसी विशेष कार्य के लिए उपयोगी दिन, सप्ताह,पक्ष,मास,आयन,ऋतू,वर्ष तिथि आदि का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से ही हो सकता है। यह सब हमारे भारत में प्राचीन काल से ही होता आया है पश्चिमी देश इस महान ज्ञान के आस पास भी नहीं थे।अन्वेषण कार्य को संपन्न करना भी ज्योतिष ज्ञान के बिना संभव नहीं है भारत ने सन 2015 में मंगल ग्रह पर सबसे कम समय पर अपना यान पहुंचाया है।उस मंगलयान को छोड़ने का समय निर्धारण करने से पहले ज्योतिष शास्त्र की सहायता से एक अच्छे मुहूर्त में यह काम किया गया जिसके परिणाम स्वरूप हमें सफलता भी मिली और हमारा बहुत ज्यादा पैसा और समय बच सका। ज्योतिष इसी प्रकार कदम कदम पर प्रत्येक व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के लिए सही समय निर्धारण करवाया करता है। क्या आप सब जानते हैं कि 1. आज के समय में सिनेमाघरों में फिल्में सिर्फ शुक्रवार को ही क्यों लगती हैं? 2. न्यायालय में जज और वकील काला कोट क्यों पहनते हैं? 3. डॉक्टर हमेशा सफेद कोट ही क्यों पहनते हैं? इन सब के पीछे भी ज्योतिष ही एकमात्र कारण है ।यह सब आपको अगले लेख ज्योतिष एक विज्ञान(भाग4)में बताऊंगा तब तक के लिए नमस्कार।
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जैसा कि मैंने ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 1)और ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 2) में यह बताया है कि ज्योतिष ही एकमात्र ऐसा शास्त्र है,जिसके सूर्य और चंद्रमा साक्षी हैं।पिंड अर्थात ग्रह अपनी किरणों से हम सब जीवो पर अपना प्रभाव डालते हैं। क्योंकि सूर्य और चंद्रमा हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते हैं और इनकी किरणों का प्रत्यक्ष रूप से हम अपने ऊपर प्रभाव होते हुए देख सकते हैं, इसी तरह बाकी ग्रह जो हमें दिखाई नहीं देते लेकिन वह भी अपनी किरणों द्वारा हमें प्रभावित करते हैं।
इसी संदर्भ में आइए एक बात पर और विचार करते हैं हम जिस ग्रह पर रहते हैं उसका नाम है पृथ्वी । पृथ्वी से 13 l बड़ा ग्रह है सूर्य अर्थात यदि सूर्य को खाली करके उसमें पृथ्वीयां फिट की जाए तो उसके अंदर लगभग कई पृथ्वियां समा जाएंगी।सूर्य पृथ्वी से इतना बड़ा ग्रह है और सूर्य से भी बड़ा ग्रह है गुरु।गुरु ब्रह्मांड में ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है और गुरु से भी बड़ा है ज्येष्ठा नक्षत्र।यदि आज के युग में कोई व्यक्ति पृथ्वी से ज्येष्ठा नक्षत्र तक पहुंचने की सोचे तो उस व्यक्ति को लगभग एक लाख प्रकाश वर्ष का समय ज्येष्ठा नक्षत्र तक पहुंचने में लगेगा। यह बात वैज्ञानिकों के लिए सोचने का विषय है कि हम भारतीय ज्येष्ठा नक्षत्र को बहुत पहले से ही लिखते आ रहे हैं।
ज्येष्ठा नक्षत्र के बारे में हम हजारों लाखों वर्षों से जानते हैं।अब सोचने का विषय यह है कि हम भारतीय इतने वर्षों पूर्व जबकि हमारे पास कोई आधुनिक साधन भी नहीं होते थे हम ज्येष्ठा नक्षत्र तक कैसे पहुंच गए और उसका नामकरण कर आए ज्येष्ठा। हम सब जानते हैं कि हमारे भारत मे ज्येष्ठ का अर्थ होता है सबसे बड़ा। अर्थात हम यह बहुत पहले से ही जानते हैं कि ज्येष्ठा नक्षत्र से बड़ा ब्रह्माण्ड में कोई नही है ,ग्रह , उपग्रह, नक्षत्र इत्यादि कोई भी नहीं। पश्चिमी सभ्यता के लोगों को ये सब लगभग केवल 800 वर्ष पूर्व पता लगा। उस समय या तो हमारे पास विज्ञान आज के विज्ञान से कहीं ज्यादा होगा या ऋषि मुनि अपने तपोबल से यह ज्ञान प्राप्त करते थे।हमे अपने ऋषी मुनियों का ऋणि रहना चाहिए। जिनके कारण ये महान ज्ञान हमे प्राप्त हुआ।
ज्योतिषशास्त्र ना केवल मानव जीवन की व्याख्या करता है अपितु सृष्टि के विषय में भी फल का निरूपण करता है।खगोलीय हलचलें किन योगों में होंगी, सूर्य ग्रहण कब पड़ेगा, सूर्य का अलग-अलग जगहों में प्रतिदिन उदय और अस्त होने का समय, वर्षा कब होगी ,अधिक वर्षा और कम वर्षा किन योगों में होती है ,मेघों का गर्भधारण क्या है ,मौसम ज्ञान ,खेती कैसी होगी ,भूकंप किस योग में आएगा, बाजार की तेजी मंदी का विचार ,वास्तु विद्या तथा भूमि परीक्षण आदि बहुत से विषय ज्योतिष शास्त्र में विवेचित रहते हैं।भूमि के नीचे कहां पर कितनी गहराई में जल है, कहां अस्थियाँ हैं, इन सब के ज्ञान के अद्भुत तरीके ज्योतिष में विद्यमान है। मनुष्य के आज भी समस्त कार्य ज्योतिष द्वारा ही चलते हैं किसी विशेष कार्य के लिए उपयोगी दिन, सप्ताह,पक्ष,मास,आयन,ऋतू,वर्ष तिथि आदि का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से ही हो सकता है। यह सब हमारे भारत में प्राचीन काल से ही होता आया है पश्चिमी देश इस महान ज्ञान के आस पास भी नहीं थे।अन्वेषण कार्य को संपन्न करना भी ज्योतिष ज्ञान के बिना संभव नहीं है भारत ने सन 2015 में मंगल ग्रह पर सबसे कम समय पर अपना यान पहुंचाया है।उस मंगलयान को छोड़ने का समय निर्धारण करने से पहले ज्योतिष शास्त्र की सहायता से एक अच्छे मुहूर्त में यह काम किया गया जिसके परिणाम स्वरूप हमें सफलता भी मिली और हमारा बहुत ज्यादा पैसा और समय बच सका। ज्योतिष इसी प्रकार कदम कदम पर प्रत्येक व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के लिए सही समय निर्धारण करवाया करता है। क्या आप सब जानते हैं कि 1. आज के समय में सिनेमाघरों में फिल्में सिर्फ शुक्रवार को ही क्यों लगती हैं? 2. न्यायालय में जज और वकील काला कोट क्यों पहनते हैं? 3. डॉक्टर हमेशा सफेद कोट ही क्यों पहनते हैं? इन सब के पीछे भी ज्योतिष ही एकमात्र कारण है ।यह सब आपको अगले लेख ज्योतिष एक विज्ञान(भाग4)में बताऊंगा तब तक के लिए नमस्कार।
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Friday, June 14, 2019
ज्योतिष एक विज्ञान( भाग- 2)
आप सब ने ज्योतिष एक विज्ञान( भाग -1) में चंद्र ग्रह के बारे में जाना, आइए ज्योतिष एक विज्ञान( भाग -2) में बात करते हैं सूर्य के बारे में ,सूर्य ग्रह नहीं है सूर्य एक तारा है लेकिन सूर्य का पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी ,वनस्पति पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है ,इसलिए हमारे ऋषियों ने सूर्य को ग्रह माना। हम सब जानते हैं की पृथ्वी पर वन्य जीवन और मानव जीवन सूर्य के प्रकाश और ऊष्मा के बिना असंभव है। सूर्य के प्रभाव से ही दिन -रात और ऋतुयें बनती हैं ।सूर्य की ऊष्मा के कारण जल चक्र पूरा होता है और सभी प्राणियों को वर्षा के रूप में जीवन के लिए जल प्राप्त होता है ।सभी प्रकार के बीज सूर्य की ऊष्मा के बिना अंकुरित नहीं हो सकते ।सूर्यमुखी का फूल सूर्य की दिशा के अनुसार अपनी दिशा बदलता रहता है ।
रूस के वैज्ञानिकों ने खोज की है कि जब अंतरिक्ष में सूर्य ग्रहण होता है तो पृथ्वी पर जंगल में पक्षी 24 घंटे पहले ही कलरव करना बंद कर देते हैं ।जंगल के सभी जानवर अज्ञात भय से ग्रसित हो जाते हैं । बोस इंस्टीट्यूट कोलकाता के माइक्रोबायोलॉजी के दो वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है ,कि सौर मंडल के विकरण से वायुमंडल के जीवाणुओं का नियंत्रण होता है । 16 फरवरी 1980 के पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर कोलकाता के प्रख्यात बोटैनिकल गार्डन के वायुमंडल में बैक्टीरिया फ़ंजाई एवं घातक जीवाणु प्रचुर मात्रा में पाए गए । सूर्य ग्रहण से पूर्व और बाद में विभिन्न जीवाणुओं का अध्ययन करके पाया गया कि सूर्य ग्रहण के समय में ना केवल इनकी संख्या में वृद्धि हुई है अपितु इनकी मारक क्षमता में भी अत्यधिक वृद्धि हुई ।इन वैज्ञानिकों ने देखा की सूर्यग्रहण के अवसर पर पानी को खुला छोड़ देने पर उस में विभिन्न प्रकार के विषाणु और कीटाणु वायुमंडल से आकर उसे विषाक्त करते हैं ,जबकि अन्य अवसरों पर ऐसा नहीं होता। इसीलिए हमारे भारतीय ऋषि -मुनियों का निर्देश है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय खुला जल अन्य व आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए ।हमारे भारत में तो ग्रहण के दिन उपवास करने की परंपरा चली आ रही है ।सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय नदियों आदि में स्नान की परंपरा है जो पूर्णतया वैज्ञानिक है, वैज्ञानिकों का मत है कि प्रवाहित जल में प्राण- ऊर्जा प्रचुर मात्रा में होती है। ग्रहण के समय मानव शरीर पर वायुमंडलीय विषाणु का आक्रमण होता है । अब तक हम सब यह समझ ही गए हैं कि आकाशीय पिंड अर्थात ग्रह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संपूर्ण जगत को प्रभावित करते हैं ।इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि मनुष्य की प्रकृति और स्वास्थ्य का गहरा संबंध ग्रहों से है। हमारे ज्योतिषाचार्य प्राचीन समय से ही सूर्य व चंद्र ग्रहण की स्टीक भविष्यवाणियां करते आ रहे हैं वो भी बिना किसी विशेष यंत्रो की सहायता से। ज्योतिष आचार्यों ने 100 वर्ष का पंचांग बनाया हुआ है जिसके लगभग 74 साल बीत चुके हैं और 26 वर्ष शेष हैं उस पंचांग में पंचांग की शुरुआत से 100 साल तक की प्रत्येक ग्रहण लगने की तिथि, ग्रहण ,योग ,लग्न ,ग्रहों की स्थिति ,सूर्य उदय और सूर्य अस्त का समय भी बिल्कुल ठीक -ठीक लिखा हुआ है और वह पंचांग इस बात का साक्षी है।। दिनों का नामकरण हमारे ऋषि-मुनियों की ही संसार को देन है। इसके पीछे वर्षों की मेहनत और सोच है, बाकी सभी संसार दिनों के नाम करण में हमारे ऋषि-मुनियों का ऋणी रहेगा क्योंकि यह नामकरण हम भारतीयों का आविष्कार है जैसे हम रविवार कहते हैं जिसका अर्थ है रवि (सूर्य)का दिन, वो लोग Sunday कहते हैं अर्थात Sun (सूर्य)का दिन । हम सोमवार कहते हैं और पश्चिमी सभ्यता के लोग Monday कहते हैं अर्थात Moon (चन्द्रमा) का दिन । ऐसे ही बाकी दिनों के विषय में पश्चिमी सभ्यता ने हमारा अनुकरण किया है यह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व और सम्मान की बात है । जिस प्रकार सूर्य ब्रह्मांड में रोशनी और ऊष्मा देता है उसी प्रकार ज्योतिष शास्त्र में सूर्य नेत्रों की रोशनी और शरीर के तापमान का कारक है। क्योंकि प्रत्येक बीज सूर्य की उष्मा के कारण ही अंकुरित होता है इसलिए ज्योतिष में सूर्य को पिता का कार्य कहा गया है ।
जैसा कि मैंने ज्योतिष एक विज्ञान (भाग -1) में चन्द्रमा के बारे मे लिखा कि मानसिक रोगियों को Medical science पूर्णिमा की रात को चाँद देखने से मना करती है, जिनकी आँखों की रोशनी कम हो जाती है उनको पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा को निहारने के लिए डॉक्टर ही सलाह देते हैं।
और ऊपर जो मैंने Vitamin -D वाली बात कही, सूर्य की धूप में बैठने की सलाह भी Doctor ही तो देतें हैं। यहां पर एक बात समझ मे आती है कि जब हमसे लाखों करोड़ों किलोमीटर दूर स्तिथ सूर्य और चन्दमा अपनी किरणों से हम पर इतना प्रभाव रखते हैं तो बाकी ग्रहों का प्रभाव भी होता है। वो हमें दिखाई दें या दिखाई न दें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने आपको ज्योतिष एक विज्ञान (भाग -1 )में बताया कि ज्योतिष ही एकमात्र ऐसा विषय है जिसके साक्षी सूर्य और चन्द्र है। वे हमें दिखाई देते हैं । उनका प्रभाव हम देख व समझ पा रहे हैं।इसी तरह से जो ग्रह हमे दिखाई नहीं देते उनका भी हम पर पूर्ण प्रभाव है। मानव का पूरा जीवन इन्ही ग्रहों द्वारा नियंत्रित होता है। किसी का जीवन Smooth होता है और किसी का कठिनाइयों से भरा हुआ, चाहे एक ही परिवार के ही सदस्य क्यों ही न हों, फिर भी जीवन में भिन्नता आ ही जाती है। तो ये भिन्नता हमे ग्रहों द्वारा ही प्राप्त होती है। उदहारण के लिए एक ही परिवार में दो भाई हों दोनों में से किसी एक की Married Life, professional Life, Life style , Health issues या सन्तान की दिक्कत होना इत्यादि रहता है, यदि किसी परिवार में 4 सदस्य हैं तो ये आवश्यक नही है कि सभी के साथ ये दिक्कतें परेशानियां हो, किसी एक को भी हो सकती हैं। तभी तो कहते हैं कि इसके तो ग्रह खराब हैं। हमारे पूर्वज यह ज्ञान रखते थे, लेकिन हमारे देश पर मुगलों और अंग्रेजों का राज रहा है। उन्होंने हम भारतीयों को कमजोर करने के लिये ज्योतिष और आयुर्वेद को बकवास और झूठ कहना शुरू किया। अंग्रेजों ने भारत मे शिक्षा ही ऐसी परोसी जिसका मकसद आयुर्वेद और ज्योतिष को समाप्त करना ही था। आज भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े हुए लोग ज्योतिष और आयुर्वेद को मानते ही नहीं। जबकि किसी भी विद्या से हमारी विद्या प्राचीन व श्रेष्ठ है । हमारी प्राचीन विद्याओं के कारण ही हमारा देश विश्व गुरु था। आज इन विद्याओं को अपनाने और बचाने की आवश्यकता हैऔर ये बात प्रत्येक भारतीय को समझनी चाहिए।
ज्योतिष एक विज्ञान( भाग - 3) में इस विषय को और ज्यादा विस्तृत करने की कोशिश करूंगा।
आप सभी का इस लेख को पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्येवाद। हमारे साथ बने रहें और अपनी सलाह देते रहें।
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Wednesday, June 5, 2019
ज्योतिष एक विज्ञान (भाग -1)
ज्योतिष एक विज्ञान (भाग -1)
आइए ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 1 )में बात करते हैं चंद्रमा की।ज्योतिष एक विज्ञान( भाग- 2) में सूर्य आदि ग्रहों की जानकारियां प्राप्त होंगी।पूरा ब्रह्मांड पांच तत्वों से मिलकर बना है अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश ,जल ,वायु । ब्रह्मांड में जितना भी जल है उस का कारक चंद्रमा है। इस बात को समझने के लिए एक साइंटिफिक उदाहरण देता हूं यह बात सभी जानते हैं की प्रत्येक पूर्णिमा की रात को समुद्र में ज्वार भाटा आता है, उसका कारण चंद्रमा है। उस रात चंद्रमा पूर्ण बली होता है और अपने गुरुत्वाकर्षण बल से अपनी कारक वस्तु जल को अपनी ओर आकर्षित करता है (खींचता है) क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से कहीं ज्यादा होता है ,इसलिए चंद्रमा द्वारा ऊपर उठाया हुआ जल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे आ जाता है ।पानी के ऊपर उठने और नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार भाटा कहा जाता है ।इस तथ्य को वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं कि इसका कारण चंद्रमा है। जैसे पृथ्वी पर 71% जल की मात्रा है वैसेे ही हमारेेे शरीर में भी 71% जल की मात्रा है ,चंद्रमा जब समुद्र के जल को प्रभावित कर सकता है तो हमारे शरीर के जल तत्व को भी प्रभावित करता है ।जिसके परिणाम स्वरूप चंद्रमा का प्रभाव हमारे मन पर पूर्ण रूप सेे होता है ,हमारा मन कभी शांत जल की तरह शांत होता हैैै और कभी ज्वाार भाटा की तरह अव्यवस्थित होता है ।ना तो कभी चंद्रमा विश्राम करता है और ना ही हमारा मन कभी रुकता है ।चंद्रमा की चांदनी में शीतलता और सौम्यता होती है ,ज्योतिष में भी चंद्रमाा को शीतल और सौम्य ग्रह ही लिया गया है ।अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार यह पाया गया कि अधिकांश हत्याकांड एवं अपराध अमावस्या एवं पूर्णिमा के आसपास ही होते हैं । डॉक्टर Budai
के अनुसार मनुष्य में कामुकता और मिर्गी या पागलपन का दौरा इन्हीं दिनों के आसपास आता है डॉक्टर Budai को आप इंटरनेट पर देख सकते हैं।
मानसिक रूप से बीमार रोगियों को उनका डॉक्टर पूर्णिमा की रात को चाँद न देखने की सलाह देता है।क्योंकि मन का कारक चन्द्रमा है और पूर्णिमा की रात को चन्द्र सबसे ज्यादा बली होता है, जिनका मन पहले से अव्यवस्थित है उस रात उनको ज्यादा परेशानी होगी । जो क्रूर किस्म के मनोरोगी होते हैं उनको तो पूर्णिमा की रात बेड़ियों से बांधकर या बंद कमरे में रखा जाता है। कारण सिर्फ चन्द्रमा है। जिन लोगों का BP High रहता है , पूर्णिमा के आस पास उनका कोई भी ऑपरेशन नहीं किया जा सकता क्योंकि उन दिनों खून का दौरा ज्यादा तेज होता है।
कुमुदिनी और रात की रानी जैसे फूल रात के समय चन्द्र किरणों से ही खिलते हैं। इन फूलों का रात के समय ही खिलना विशेष अर्थ रखता है। चन्द्रमा जब इन वनस्पतियों पर अपना प्रभाव रख सकता है तो हम भी तो उसी धरा पर ही रहते हैं, जहां पर ये सब फूल पौधे हैं।
प्राचीन काल से अब के समय तक हमारे विद्वान ज्योतिष आचार्य चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के होने की सही तिथि और समय का आंकलन करके वर्षों पूर्व ही बता देते हैं । ये गणनाएँ मात्र कल्पना नहीं हैं, यह विज्ञान की कसौटी पर भी खरी उतरती हैं।
अब सवाल यह आता है कि विज्ञान यह गणनाएँ लगभग 800 साल पहले करने लगा है और हमारे पूर्वज इन्ही गणनाओं को हजारों लाखों वर्षो पूर्व से ही करते आ रहे हैं। इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में हमारे पास विभिन्न ग्रन्थ मौजूद हैं। हमारे ऋषि मुनियों के पास यह ज्ञान होता था ,यह हमारे लिए गर्व व हर्ष की बात है कि हम भारतवासी केवल 800 साल से ही नहीं बल्कि प्राचीन समय से वैज्ञानिक हैं।बाकी संसार ने हमसे ही ज्ञान प्राप्त किया है।
हमारे पूर्वजों ने बिना किसी विशेष उपकरण की सहायता के किस प्रकार ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त की , ग्रहों की गणना , ग्रहों की पृथ्वी से दूरी, उनकी आपस मे दूरी, उनके रंग, व्यास, आकार , गुण इत्यादि कैसे जाना यह भी विचार करने योग्य तथा खोज करने वाला विषय है।
इस लेख में मैंने सिर्फ चन्द्रमा के बारे मे लिखा। आने वाले ज्योतिष एक विज्ञान( भाग -2) में सूर्य के बारे में जानकारी प्राप्त होगी तथा मेरे पास ज्योतिष एक विज्ञान विषय की जितनी भी जानकारी है, वह सारी जानकारी आपको आने वाले Blogs में मिलेंगी। यदी इस विषय की आपके पास कोई सामग्री हो तो कृपया करके हमसे साझा करें। धन्येवाद।
Writer,
Astrologer Deepak mudgil
91-9813508507
आज के इस कंप्यूटर युग में हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए विडंबना का विषय यह है कि हमें यह सिद्ध करना पड़ रहा है कि ज्योतिष विज्ञान है ,जबकि सही मायने में ज्योतिष विज्ञान का अंग नहीं बल्कि विज्ञान ज्योतिष से निकला है ।आज भी समाज के कुछ लोग ज्योतिष को विज्ञान ना मानकर सिर्फ आडंबर की दृष्टि से देखते है ,जबकि यह सही नहीं है । आइए समझाता हूं विज्ञान लगभग 800 साल पहले अंतरिक्ष और अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों और उपग्रहों तक पहुंचा क्योंकि लगभग 800 साल पहले विज्ञान ने टेलिस्कोप का आविष्कार किया था ,इसके विपरीत हमारे ऋषि-मुनियों ने लाखों वर्षों पूर्व ही इन सब की प्रत्येक जानकारी प्राप्त कर ली थी ।यह सब कुछ हमारे प्राचीन शास्त्रों में वर्णित है ।उन्होंने अपने योग बल तथा अन्य तरीकों से अध्ययन किया कि यह सभी ग्रह अंतरिक्ष में केवल घूमते ही नहीं अपितु पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी वनस्पति पर ग्रहों का पूर्ण प्रभाव है । हम सभी ब्रह्मांड का ही हिस्सा हैं,क्योंकि ब्रह्मांड पांच तत्वों से मिलकर बना है और हमारा शरीर भी उन्ही पांच तत्वों से मिलकर बना है ,जैसे एक नगर या मोहल्ले में होने वाली गतिविधियों का प्रभाव वहां पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी पर पड़ेगा वैसे ही ब्रह्मांड में हम अन्य चीजों से प्रभावित होते हैं ।आज भी कुछ लोग यह नहीं मानते की ग्रहों का मानव जीवन
पर कोई प्रभाव पड़ता है ,आइए इस बात को तर्क के साथ समझने का प्रयास करते हैं कि ज्योतिष शास्त्र अपने आप में पूर्ण वैज्ञानिक धारणा लिए हुए है।ज्योतिष ही एकमात्र ऐसा शास्त्र है जिसके साक्षी सूर्य और चंद्रमा है। यह मात्र कल्पना नहीं है प्रत्यक्ष सत्य है। यह ज्योतिष एक विज्ञान blog 4 भागों में आएगा।
पर कोई प्रभाव पड़ता है ,आइए इस बात को तर्क के साथ समझने का प्रयास करते हैं कि ज्योतिष शास्त्र अपने आप में पूर्ण वैज्ञानिक धारणा लिए हुए है।ज्योतिष ही एकमात्र ऐसा शास्त्र है जिसके साक्षी सूर्य और चंद्रमा है। यह मात्र कल्पना नहीं है प्रत्यक्ष सत्य है। यह ज्योतिष एक विज्ञान blog 4 भागों में आएगा।
आइए ज्योतिष एक विज्ञान (भाग 1 )में बात करते हैं चंद्रमा की।ज्योतिष एक विज्ञान( भाग- 2) में सूर्य आदि ग्रहों की जानकारियां प्राप्त होंगी।पूरा ब्रह्मांड पांच तत्वों से मिलकर बना है अग्नि ,पृथ्वी ,आकाश ,जल ,वायु । ब्रह्मांड में जितना भी जल है उस का कारक चंद्रमा है। इस बात को समझने के लिए एक साइंटिफिक उदाहरण देता हूं यह बात सभी जानते हैं की प्रत्येक पूर्णिमा की रात को समुद्र में ज्वार भाटा आता है, उसका कारण चंद्रमा है। उस रात चंद्रमा पूर्ण बली होता है और अपने गुरुत्वाकर्षण बल से अपनी कारक वस्तु जल को अपनी ओर आकर्षित करता है (खींचता है) क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से कहीं ज्यादा होता है ,इसलिए चंद्रमा द्वारा ऊपर उठाया हुआ जल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे आ जाता है ।पानी के ऊपर उठने और नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार भाटा कहा जाता है ।इस तथ्य को वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं कि इसका कारण चंद्रमा है। जैसे पृथ्वी पर 71% जल की मात्रा है वैसेे ही हमारेेे शरीर में भी 71% जल की मात्रा है ,चंद्रमा जब समुद्र के जल को प्रभावित कर सकता है तो हमारे शरीर के जल तत्व को भी प्रभावित करता है ।जिसके परिणाम स्वरूप चंद्रमा का प्रभाव हमारे मन पर पूर्ण रूप सेे होता है ,हमारा मन कभी शांत जल की तरह शांत होता हैैै और कभी ज्वाार भाटा की तरह अव्यवस्थित होता है ।ना तो कभी चंद्रमा विश्राम करता है और ना ही हमारा मन कभी रुकता है ।चंद्रमा की चांदनी में शीतलता और सौम्यता होती है ,ज्योतिष में भी चंद्रमाा को शीतल और सौम्य ग्रह ही लिया गया है ।अमेरिका में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार यह पाया गया कि अधिकांश हत्याकांड एवं अपराध अमावस्या एवं पूर्णिमा के आसपास ही होते हैं । डॉक्टर Budai
के अनुसार मनुष्य में कामुकता और मिर्गी या पागलपन का दौरा इन्हीं दिनों के आसपास आता है डॉक्टर Budai को आप इंटरनेट पर देख सकते हैं।
मानसिक रूप से बीमार रोगियों को उनका डॉक्टर पूर्णिमा की रात को चाँद न देखने की सलाह देता है।क्योंकि मन का कारक चन्द्रमा है और पूर्णिमा की रात को चन्द्र सबसे ज्यादा बली होता है, जिनका मन पहले से अव्यवस्थित है उस रात उनको ज्यादा परेशानी होगी । जो क्रूर किस्म के मनोरोगी होते हैं उनको तो पूर्णिमा की रात बेड़ियों से बांधकर या बंद कमरे में रखा जाता है। कारण सिर्फ चन्द्रमा है। जिन लोगों का BP High रहता है , पूर्णिमा के आस पास उनका कोई भी ऑपरेशन नहीं किया जा सकता क्योंकि उन दिनों खून का दौरा ज्यादा तेज होता है।
कुमुदिनी और रात की रानी जैसे फूल रात के समय चन्द्र किरणों से ही खिलते हैं। इन फूलों का रात के समय ही खिलना विशेष अर्थ रखता है। चन्द्रमा जब इन वनस्पतियों पर अपना प्रभाव रख सकता है तो हम भी तो उसी धरा पर ही रहते हैं, जहां पर ये सब फूल पौधे हैं।
प्राचीन काल से अब के समय तक हमारे विद्वान ज्योतिष आचार्य चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के होने की सही तिथि और समय का आंकलन करके वर्षों पूर्व ही बता देते हैं । ये गणनाएँ मात्र कल्पना नहीं हैं, यह विज्ञान की कसौटी पर भी खरी उतरती हैं।
अब सवाल यह आता है कि विज्ञान यह गणनाएँ लगभग 800 साल पहले करने लगा है और हमारे पूर्वज इन्ही गणनाओं को हजारों लाखों वर्षो पूर्व से ही करते आ रहे हैं। इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में हमारे पास विभिन्न ग्रन्थ मौजूद हैं। हमारे ऋषि मुनियों के पास यह ज्ञान होता था ,यह हमारे लिए गर्व व हर्ष की बात है कि हम भारतवासी केवल 800 साल से ही नहीं बल्कि प्राचीन समय से वैज्ञानिक हैं।बाकी संसार ने हमसे ही ज्ञान प्राप्त किया है।
हमारे पूर्वजों ने बिना किसी विशेष उपकरण की सहायता के किस प्रकार ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त की , ग्रहों की गणना , ग्रहों की पृथ्वी से दूरी, उनकी आपस मे दूरी, उनके रंग, व्यास, आकार , गुण इत्यादि कैसे जाना यह भी विचार करने योग्य तथा खोज करने वाला विषय है।
इस लेख में मैंने सिर्फ चन्द्रमा के बारे मे लिखा। आने वाले ज्योतिष एक विज्ञान( भाग -2) में सूर्य के बारे में जानकारी प्राप्त होगी तथा मेरे पास ज्योतिष एक विज्ञान विषय की जितनी भी जानकारी है, वह सारी जानकारी आपको आने वाले Blogs में मिलेंगी। यदी इस विषय की आपके पास कोई सामग्री हो तो कृपया करके हमसे साझा करें। धन्येवाद।
Writer,
Astrologer Deepak mudgil
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आ
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